Tuesday, September 8, 2009

भारत दुनिया को क्या दे सकता है

स्वामी विवेकानंद के विचार
केवल अध्यात्म के परिपेक्ष्य में ही आज भारत दुनिया को कुछ दे सकता हैश्रम के अंतर्राष्ट्रीय विभागीकरण में यह कार्य अपने भाग में आया है जिसे हमें बडी बखूबी निभाना हैपूर्ण जवाबदारी र्ऌमानदारी और आस्था सेसौ साल पहले स्वामी विवेकानंद ने इस प्रयोग को शुरू किया थाआज हम भारतवासियों को उस कार्य को आगे बढाना है

स्वामी विवेकानंद कहते हैं ऌस पुण्यभूमि की नीव ऌसका आधार ऌसका जीवन स्त्रोत केवल धर्म है और कुछ नहीं
अन्य लोगों को व्यापार से प्राप्त धन संपत्ति की जगमगाहट और उद्योग के विकास से प्राप्त सुख के भौतिक विलास और विकास की चर्चा करने दोहम भारतीय न इसे समझते हैं न ही हमे इसे समझ्ने की जरूरत महसूस होती हैलेकिन भारतीय को अध्यात्म पर छेडोधर्म के बारे में उससे बात करोईश्वर या आत्मा का विषय निकालो मैं विश्वास दिलाता हूं भारत का गरीब से गरीब किसान भी इन बातों में दुनिया के किसी दार्शनिक से कम नहीं उतरेगाहमें दुनियां को कुछ सिखाना है

यही एक मुख्य कारण है जिसकी वजह से अनेक आपत्तियों के बावजूद सदियों की गुलामी और शोषण को सह कर भी हमारा भारत
जिंदा हैहमने अभी भी ईश्वर को अात्मा को और धर्म को पकडे रखा है

कहीं हम अपने आधुनिक नजरिये से धर्म और ईश्वर की व्याख्या सीमित न कर दें इसलिये स्वामीजी कहते है
1. प्रत्येक व्यक्ति के भीतर स्थित ईश्वरता का नाम ही धर्म है

2.  धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इन्सान और फिर भगवान बनाने का सामर्थ रखती है

3.  निस्वार्थ और पवित्र बनने का प्रयास ही धर्म है

4.  हर जीव अव्यक्त
ब्रह्म हैजीवन का उद्देश्य इस अव्यक्त ब्रह्म के ईश्वरीय तत्व को प्रकट करना है ध्यानभक्ति क़र्म और ज्ञान योग द्वारा बाहरी और भीतरी प्रकृति को वश में करना संभव हैऐसा करने पर तुम मुक्त हो जाओगेयह स्वतंत्रता ही धर्म का सार हैदर्शन तात्विक चर्चा मांदिर चर्च क़िताबें और शास्त्र पूजा और पाठ सब धर्म के गौण अंग है
अमेरिका और
ब्रिटेन से विजयी होकर लौटने के बाद मद्रास क़लकत्ता और कई स्थानों पर स्वामी विवेकानंद का खूब भव्य स्वागत हुआइस स्वागत के जवाब में उन्होंने अति सुन्दर और प्रभावशाली प्रवचन दियेइन भाषणों में भारत की जनता के प्रति उनके सारगर्भित सन्देश मौजूद हैं
उनका पक्का विश्वास था कि आध्यात्मिकता के सिवाय देने के लिये भारत के पास अन्य कुछ भी नहीं
भारत न तो राजनैतिक ना ही वैज्ञानिक क्षेत्र में औरों की सहायता कर सकता हैसच्चा धर्म ही भारत की शान को उजागर कर सकता हैउसकी सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रख सकता हैऔर यदि आध्यात्मिक उन्नति को बढावा देने में वह असफल हुआ तो केवल भारतीय संस्कृति को ही नहीं सारे विश्व को इसका बहुत भारी मूल्य चुकाना पडेगा
मानव जाति को विनाश से बचाने के लिये और विकास की ओर अग्रसर करने के लिये यह अत्यावश्यक है कि प्राचीन ॠषि संस्कृति भारत में फिर से स्थापित की जाये जो अनायास ही फिर सारी दुनिया में प्रचलित होगी
यह उपनिषद और वेदान्त पर आधारित संस्कृति ही अंतर्राष्ट्रीय धर्म की नीव बन सकती है


पाश्चात्य देशों में स्वामी विवेकानंद

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