वैवाहिक जीवन में उन्नत आध्यात्मिक प्रेम का महत्व श्री रामकृष्ण और शारदादेवी के विवाह ने प्रस्थापित किया है। बच्चों को जन्म दिये बिना मातृत्व की गरिमा और आनन्द की मिसाल उन्होने दुनिया के सामने रखी। जाति भेद, वर्ण भेद, धर्म भेद से परे ज्ञान अज्ञान से अतीत उन्होने कई बच्चो को अपनाया और जगत की माँ के रूप में अपने आप को स्थापित किया। दैवी शक्ति ने माँ शारदा के रूप में अवतरित होकर यह अनूठा और अनोखा व्यक्तित्व दुनिया के सामने प्रस्तुत किया और भारत की उज्ज्वल नारी परंपरा में माँ शारदादेवी का नाम भी जुड ग़या।
माँ शारदा देवी के जीवन में उनके अति विकसित प्रेमभाव ने ऊंच नीच ज्ञान अज्ञान धर्म अधर्म की सीमायें पार कर ली थी। उनकी शरण में आनेवाला हर व्यक्ति उनके लिये पुत्र के समान था। उनकी अपार कृपा-सागर की बूदें हर एक झुलसे हुए मन को शांति प्रदान करने का सार्मथ्य रखती थीं। मनुष्य की कमजोरी और उनके अपराध वे बडी बखूबी नजरअंदाज कर देती थी। और फिर अपने वात्सल्य से वे शांतिभाव प्रदान करती थी। अनेक चोर बदमाश उनके वात्सल्य और ममता भरे व्यवहार से सुधार के रास्ते पर चलने लगे थे।
इनमे अमजद डाकू को जीवन परिवर्तन की कहानी बहुत प्रसिध्द है। माँ शारदामणिदेवी ने अमजद के द्वारा भक्तिपूर्वक लाए हुए फल-फूल को प्रेम से स्वीकार किया और उससे कभी घृणा नहीं की। यह सब देखकर अमजद और उसके साथी आश्चर्य और आनन्द से भरमा गये थे। उन्होने श्री माँ के घर की दिवारों की भी मरम्मत भी की।
एक दिन अमजद को माँ ने खाने पे बुलाया। अपनी भतीजी नलिनी को माताजी ने उसे खाना परोसने को कहा। जात पात में विश्वास रखने वाली नलिनी अमजद की थाली में रोटी दूर-दूर से ही फेंक रही थी। यह देखा माँ को बडा कष्ट हुआ। वे नलिनी से बोली ''अरे वाह रे नलिनी, इस तरह फेंक कर परोसने से क्या किसको अच्छा लगेगा? वह क्या प्रसन्नता से भोजन कर पायेगा? ला मुझे दे मे परोसती हूं मेरे बेटे को।'' ऐसा कह कर माँ ने दुलार से अमजद के पास बैठकर उसे पंखा किया और खाना परोसा।
अमजद की कुछ कमजोरियां फिर भी वैसी ही रहीं। एक बार उसे पुलिस पकड कर ले गयी तो माँ को उसकी बडी चिन्ता हुई। जब जेल से छूटकर वह वापस आया तब जाकर कही माँ को राहत मिली। अमजद के अंतिम दिन माँ और ईश्वर की भक्ति में गुजरे।
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