ऐरी म्हां दरद दिवाणी म्हारा दरद न जाण्यौ कोय घायल री गत घायल जाण्यौ हिवडो अगण सन्जोय।। जौहर की गत जौहरी जाणै क्या जाण्यौ जण खोय मीरां री प्रभु पीर मिटांगा जो वैद साँवरो होय।। - मीरां | भावार्थ - ऐ री सखि मुझे तो प्रभु के प्रेम की पीडा भी पागल कर जाती है । इस पीडा को कोई नहीं समझ सका। समझता भी कैसे। यूं भी दर्द को वही समझ सकता है जिसने इस दर्द को सहा हो, प्रभु के प्रेम में घायल हुआ हो। मेरा हृदय तो इस आग को भी संजोये हुए है। रतनों को तो एक जौहरी ही परख सकता है, जिसने प्रेम की पीडा रूपी यह अमूल्य रत्न ही खो दिया हो वह क्या जानेगा। अब मीरा की पीडा तो तभी मिटेगी अगर साँवरे श्री कृष्ण ही वैद्य बन कर चले आएं। |
Friday, September 18, 2009
मीरां का भक्ति विभोर काव्य-1
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