Friday, September 18, 2009

मीरां का भक्ति विभोर काव्य-1


ऐरी म्हां दरद दिवाणी
म्हारा दरद न जाण्यौ कोय
घायल री गत घायल जाण्यौ
हिव
डो अगण सन्जोय।।
जौहर की गत जौहरी जाणै
क्या जाण्यौ जण खोय
मीरां री प्रभु पीर मिटांगा
जो वैद
साँवरो होय
।।

- मीरां
   
भावार्थ - 
ऐ री सखि मुझे तो प्रभु के प्रेम की पीडा भी पागल कर जाती है
इस पीडा को कोई नहीं समझ सकासमझता भी कैसेयूं भी दर्द को वही समझ सकता है जिसने इस दर्द को सहा हो, प्रभु के प्रेम में घायल हुआ होमेरा हृदय तो इस आग को भी संजोये हुए हैरतनों को तो एक जौहरी ही परख सकता है, जिसने प्रेम की पीडा रूपी यह अमूल्य रत्न ही खो दिया हो वह क्या जानेगाअब मीरा की पीडा तो तभी मिटेगी अगर साँवरे श्री कृष्ण ही वैद्य बन कर चले आएं

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