Saturday, February 18, 2012

...वो खुदा हो जायेगा


हम मुहब्बत के पुजारी हैं मुहब्बत की कसम।
जिसको भी सजदा करेंगे वो खुदा हो जाएगा॥
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भेलनी के बेर जूठे थे ये कैसे देखते।
राम तो हैरत में थे जंगल में इतना प्यार है॥
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निभाना खून के रिश्ते बहुत आसान नहीं होता।
गुजर जाती है सारी जिंदगी खुद से लड़ाई में॥
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बहला रही है भूख को पानी उबाल कर।
वो मां है दिखा देगी बच्चों को पाल कर॥
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कैसे करवट वक्त ने बदली है लोगों देखिए।
दर दर फिरते थे जो वो आज रहबर हो गए॥
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बनाओ शहर में कुछ खुशनुमा इमारतें भी।
मगर बुजुर्गो की कुछ यादगार रहने दो॥
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ये झूठों का जमाना है, कोई सच बात मत कहना।
चुनांचे रात बेशक हो मगर तुम रात मत कहना॥
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गरदो गुबार, शोर, धुंआ और भीड़-भाड़।
मैं रह रहा हूं ऐसे बवालों के शहर में॥
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कितनी दीवारें उठी हैं एक घर केदरमियां।
घर कहीं गुम हो गया, दीवारों दर के दरमियां॥
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मोहब्बत जिंदगी केफैसलों से लड़ नहीं सकती।
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है॥
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घुटने लगता है दम सियासत का । जब फिजा खुशगवार होती है॥
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होठों पे तबस्सुम की दुकानें तो सजी हैं, चेहरे पे मगर रौनके बाजार नहीं है॥
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मैं तो इक इंकलाब हूं यारो, वक्त लगता है मुझको आने में॥
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कौन जी पाया है इन्दु यहां अपनी तरह, जिंदगी अस्ल में बस एक अदाकारी है॥

संकलन-प्रस्तु‌ति- इंदू भूषण पाण्डेय
संपर्क- 9415434249

Monday, February 13, 2012

साध्वी ऋतंभरा का ‘वात्सल्य ग्राम’ आश्रम: ----

जिस साध्वी ऋतंभरा को मुल्ला अग्निवेश (वामपंथी-कोंग्रेस दलाल ) सांप्रदायिक कहता है उसके कर्म देखो और फिर जड़ो ऐसे अग्निवेशो के मुंह पर तमाचे ......

वृंदानव में करीब ५४ एकड परिसर में साध्वी ऋतंभरा का ‘वात्सल्य ग्राम’ आश्रम है| इस आश्रम में लोगों ने छोडे बच्चें, महिला और वृद्धों के निवास की व्यवस्था है| आश्रम के विशाल दरवाजे के बाई ओर एक पालना लगा है| कोई भी व्यक्ति, कभी भी इस पालने में अनचाहा बच्चा रखकर जा सकता है| पालने में बच्चा रखनेवाले को, आश्रम से संबंधित व्यक्ति कोई भी प्रश्न नहीं पूछता| पालने में कोई बच्चा रखे जाते ही, पालने पर लगा सेंसर आश्रम के व्यवस्थापन को इसकी सूचना देता है और आश्रम का कोई अधिकारी आकर बच्चें को आश्रम में ले जाता है| ऐसे छोड़े गए बच्चे का आश्रम में प्रवेश होते ही- वह वात्सल्य ग्राम परिवार का सदस्य हो जाता है| अनाथ नहीं रहता| उसे- मॉं, मौसी, दादा-दादी; सब रिश्तेदार मिल जाते है! इसी कारण यहॉं किसे भी ‘अनाथ’ नहीं कहा जाता| यहॉं छोड़े गए हर बच्चें का उपनाम परमानंद (साध्वी ऋतंभरा के गुरू का नाम) है|

आश्रम में बच्चों के लिए, सामवेद गुरूकुलम् पाठशाला है| यहॉं सीबीएससी के अभ्यासक्रमानुसार पढ़ाई के साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास के भी उपक्रम चलाए जाते है| यहॉं के बगीचे में बच्चों के सामान्य ज्ञान के परिचय के लिए विविध जानवरों की प्रतिकृतियॉं रखी गई है| बच्चों की नैतिक शिक्षा के लिए रामायण जैसे महाकाव्य के प्रसंगों की झॉंकियॉं बनाई गई है| इन बच्चों को नॅचरोपॅथी और योग की भी शिक्षा दी जाती है| लड़कों को पॉंचवी तक आश्रम के गोकुलम् में रखा जाता है, फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें भोसला मिल्ट्री स्कूल जैसे भारत के अच्छे निवासी शालाओं में भेजा जाता है|

इस शाला के अतिरिक्त आश्रम की दुसरी भी एक शाला है| जहॉं बाहर के करीब ३५० विद्यार्थी मात्र १० रुपये मासिक शुल्क देकर पढ़ते है| इन विद्यार्थिंयों को शाला का गणवेश, एक समय का भोजन और शाला के लिए आवश्यक साहित्य नि:शुल्क दिया जाता है|

परिवारों द्वारा त्यागी गई महिलाओं के लिए आश्रम में गोकुलम् की व्यवस्था है| यहॉं आयु के अनुसार तीन महिलाओं का- मॉं, मौसी और दादी ऐसा एक परिवार बनाकर, प्रत्येक परिवार को निवास के लिए सभी सुविधाओं से युक्त चार कमरों का एक फ्लॅट दिया जाता है| इस एक परिवार के साथ पॉंच से लेकर दस बच्चें रहते हैं| इस प्रकार के तीस परिवार गोकुलम् में रहते है| परिवार के इन महिलाओं को संस्कार, रिती रिवाज और उनके पीछे के तर्क के साथ बच्चों का पालन तथा सामान्य व्यवहार की शिक्षा और आत्मरक्षा का भी प्रशिक्षण दिया जाता है|

पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आश्रम में ‘गीता रत्न’ प्रशिक्षण केन्द्र है जहॉं इन महिलाओं को बेकरी उत्पाद, एम्ब्रॉयडरी आदि स्वयंरोजगारों का प्रशिक्षण दिया जाता है|

आश्रम में, अतिदक्षता विभाग (आयसीयु) की सुविधा सहित, सभी वैद्यकीय सुविधाओं से युक्त रुग्णालय भी है| इसकी सेवाएँ, आश्रम के निवासियों के साथ बाहर के गरीब लोगों के लिए भी उपलब्ध है| यहॉं नेत्र रुग्णालय में नि:शुल्क सेवा दी जाती है|

साध्वी ऋतुंभरा कहती है, ‘‘मैंने बीस वर्ष पूर्व दिल्ली के ज्वालानगर में महिला सशक्तीकरण योजना के अंतर्गत महिलाओं को स्वयंरोजगार प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया था| २००३ में मैं वृंदावन में आई, उस समय आश्रम की सहायता करने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं था| लोगों ने सहायता दी, और आज आप उसके परिणाम देख रहे हो|’’

ये वही साध्वी ऋतम्भरा हैं जिनकी सिंह गर्जना ने 1989-90 के श्रीराम मन्दिर आन्दोलन को ऊर्जा प्रदान की थी, परन्तु उसी आक्रामक सिंहनी के भीतर वात्सल्य से परिपूर्ण स्त्री का ह्रदय भी है जो सामाजिक संवेदना के लिये द्रवित होता है. यही ह्रदय की विशालता हिन्दुत्व का आधार है कि अन्याय का डटकर विरोध करना और संवेदनाओं को सहेज कर रखना.


संपर्क :
वात्सल्यग्राम
मथुरा-वृंदावन मार्ग,
वृंदावन, पोस्ट : प्रेमनगर
उत्तर प्रदेश (भारत)
दूरभाष : +९१-५६५-२४५ ६८८८, +९१-९४१२२ ३८७८८
कैसे पहुँचे :
हवाई मार्ग : वृंदावन से सबसे नजदीक हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट १५० कि.मी. दूरीपर है| वहॉं से टॅक्सी या बसेस उपलब्ध है|
रेल मार्ग : वृंदावन रेल स्टेशनपर केवल पॅसेंजर गाडीयॉं रुकती है| वृंदावन से नजदीक रेलवे स्टेशन मथुरा, १४ कि.मी. दूरीपर है|
सडक मार्ग : आगरा, हरिद्वार और मथुरा से बसेस की व्यवस्था है|



‌पस्तु‌ति - विजय कृष्ण मिश्रा

Sunday, February 12, 2012

विज्ञान, अंधविश्वास और आस्था -----

यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों क्या बतिया रहे हैं :

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?

भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?

इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में कुछ नहीं जानते. अगर जानते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.

भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है : विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं - भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले "भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें". तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो !

तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष !
भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ !
तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास !

भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया !
ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है ..:P किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए......अब आगे सुनो
फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ???? मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने.

और सुनो -
तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है कृष्ण जी को (विष्णु अवतार).
लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !

हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग !
और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न !

कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग !
दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं......


अब मुद्दे पर आते हैं........इन सबका मतलब क्या हुआ ?

विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं !
और शिव जी ?
शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !

इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?
ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !
और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में दूध नहीं पीना चाहिए.
इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे !
इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था ! समझे कुछ ?

इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म....लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी). एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है !
तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी है !

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !

जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !

जय भारत !

By - Sahil Praveen Kakkar

Thursday, February 2, 2012

अष्टावक्र


उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्‍वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्‍चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा।


हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्‍वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्‍वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।

अपनी माता की बातें सुनने के पश्‍चात् अष्टावक्र अपने मामा श्‍वेतकेतु के साथ बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिये राजा जनक के यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ द्वारपालों ने उन्हें रोकते हुये कहा कि यज्ञशाला में बच्चों को जाने की आज्ञा नहीं है। इस पर अष्टावक्र बोले कि अरे द्वारपाल! केवल बाल सफेद हो जाने या अवस्था अधिक हो जाने से कोई बड़ा आदमी नहीं बन जाता। जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो बुद्धि में तेज हो वही वास्तव में बड़ा होता है। इतना कहकर वे राजा जनक की सभा में जा पहुँचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये ललकारा।

राजा जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी है? राजा जनक के प्रश्‍न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर प्रश्‍न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता? जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है? और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली नदी होती है।

अष्टावक्र के उत्तरों को सुकर राजा जनक प्रसन्न हो गये और उन्हें बंदी के साथ शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। बंदी ने अष्टावक्र से कहा कि एक सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है, देवराज इन्द्र एक ही वीर हैं तथा यमराज भी एक है। अष्टावक्र बोले कि इन्द्र और अग्निदेव दो देवता हैं। नारद तथा पर्वत दो देवर्षि हैं, अश्‍वनीकुमार भी दो ही हैं। रथ के दो पहिये होते हैं और पति-पत्नी दो सहचर होते हैं। बंदी ने कहा कि संसार तीन प्रकार से जन्म धारण करता है। कर्मों का प्रतिपादन तीन वेद करते हैं। तीनों काल में यज्ञ होता हे तथा तीन लोक और तीन ज्योतियाँ हैं। अष्टावक्र बोले कि आश्रम चार हैं, वर्ण चार हैं, दिशायें चार हैं और ओंकार, आकार, उकार तथा मकार ये वाणी के प्रकार भी चार हैं। बंदी ने कहा कि यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं, यज्ञ की अग्नि पाँच हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं, पंच दिशाओं की अप्सरायें पाँच हैं, पवित्र नदियाँ पाँच हैं तथा पंक्‍ति छंद में पाँच पद होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दक्षिणा में छः गौएँ देना उत्तम है, ऋतुएँ छः होती हैं, मन सहित इन्द्रयाँ छः हैं, कृतिकाएँ छः होती हैं और साधस्क भी छः ही होते हैं। बंदी ने कहा कि पालतू पशु सात उत्तम होते हैं और वन्य पशु भी सात ही, सात उत्तम छंद हैं, सप्तर्षि सात हैं और वीणा में तार भी सात ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि आठ वसु हैं तथा यज्ञ के स्तम्भक कोण भी आठ होते हैं। बंदी ने कहा कि पितृ यज्ञ में समिधा नौ छोड़ी जाती है, प्रकृति नौ प्रकार की होती है तथा वृहती छंद में अक्षर भी नौ ही होते हैं । 
अष्टावक्र बोले कि दिशाएँ दस हैं, तत्वज्ञ दस होते हैं, बच्चा दस माह में होता है और दहाई में भी दस ही होता है। बंदी ने कहा कि ग्यारह रुद्र हैं, यज्ञ में ग्यारह स्तम्भ होते हैं और पशुओं की ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं। अष्टावक्र बोले कि बारह आदित्य होते हैं बारह दिन का प्रकृति यज्ञ होता है, जगती छंद में बारह अक्षर होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। बंदी ने कहा कि त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप हैं....... इतना कहते कहते बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गये। इस पर अष्टावक्र ने श्‍लोक को पूरा करते हुये कहा कि वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद अति छंद कहलाते हैं और अग्नि, वायु तथा सूर्य तीनों तेरह दिन वाले यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

इस प्रकार शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज! मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के बाद जल में डुबोये गये सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।
अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।
अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
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