Thursday, October 8, 2009

शमाएँ जल रही क्यों

शमाएँ जल रही क्यों महफ़िल जहाँ नहीं हो
रहना है क्या चमन में खुशबू जहाँ नहीं हो ||

क्या जलजले यहाँ के पर्वत के पैर उखड़े
प्यारी है जिन्दगी जो इतिहास बन गई ||

लगता है मौत जाकर हंसते हुए रुलाकर
मस्ती यहाँ की पीकर बेहोश हो गई हो ||

मिटते भी है अनेको सैलाब आते देखो
बेकार बूंद है जो दरिया न बन बही हो ||

अपना ही घर जलाते दुनिया में नाम करते
शैतान ढूंढ़ते है इंसानियत कही हो ||

जिसके लिए जिए थे उसके लिए जियेंगे
सब मिलकर हम मरेंगे अरमान भी यही हो ||

स्व. श्री तन सिंह जी

3 comments:

Vivek kumar said...

aacha hai bhaai...

ZEAL said...

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शमाएँ जल रही क्यों महफ़िल जहाँ नहीं हो
रहना है क्या चमन में खुशबू जहाँ नहीं हो ||

Lovely lines .

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Vijay Mishra said...

thanks ZEAl ji....