Tuesday, November 2, 2010

एक मुट्ठी भर सपने


एक मुट्ठी भर सपने
तितली के पंखों की तरह उजाड क़र
किताब के पन्नों में दबा दिए जाएँ
और सोचने को रह जाय
एक लम्बी घुटन और हताशा के पश्चात पाये हुए
उन चंद सपनों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाता
लगातार बदरंग होता चला जाता हुआ
अपना वर्त्तमान
तो क्या शेष रह जाता है?

तो क्या शेष रह जाता है
सिवाय इसके
कि एक बार फिर से
अंधेरे और यातना के
उसी लम्बे सफ़र पर
निकल पड़ा जाय
अपनी जिन्दगी की किताब
खुद और सिर्फ खुद के
हवाले कर ली जाय
जो रोशनी और रंग
अंधेरे के उस सफ़र में मिलें
उनसे कुछ बाकी बचे पन्ने
शौक से रंगे जायँ
और इस तरह
अवशिष्ट जो है
अर्थहीन होने से
बचा लिया जाय।

क्योंकि अबतक के जिए हुए
इस छोटे से जीवन में
बार बार के पलायन के बावजूद
लौटना हुआ है
और हर बार यही लगा है
कि जीवन ही सच है
और इसकी सार्थकता
जरूरी ...

मेरे जीवन को अर्थ देते
उसकी सम्पूर्णता का आश्वासन भरते
मेरे ये थोड़े से सपने ही तो हैं
मेरी मुटिठयों में बाँधे हुए
जो इन मुट्ठियों में
इतना दम आ गया है
कि मैं टकरा जाती हूँ
हर मुसीबत से ,
जीत जाती हूँ
हर बार...

Andere me ujale ki kiran

GanaorI rat kI nadI kI
syaah ]maD,tI GaumaD,tI AMiQayaarI lahraoM
ko vaoga sao
iknaaro baOzI maOM ivakla hao
ivavas~ hao jaatI hUM AaOr
kUd pD,tI hUM
hhratI syaah lahraoM maoM
haqa kao haqa nahIM saUJata
@laant hao maOM DUbanao lagatI hUM
ik AQa-caotnata maoM hI
mahsaUsa haotI hOM dao saSa@t BaujaaeM
mauJao ksa kr par krtI hOM
AMQaoro kI nadI
AQa-caotnata maoM
maOM ]sa caohro kao Aksar doK kr
BaI BaUla saa jaatI hUM
vah maoro haoMzaoM maoM Apnao haoMzaoM
sao p`aNa fUMkta hO.
maoro vaxaaoM maoM spndna Bar
DUbato )dya kao
jagaata hO
zNDI doh kao ApnaI doh sao ilapTa
ApnaI ]YNata mauJasao baaMT laota hO
maOM AQa-caotnata maoM
nao~ KaolatI hUM
AaOr AMQaoro maoM ]jaalao kI ikrNa
saI mauskana ]sako caohro pr patI hUM
basa vahIM ]laJa kr
baaik ka caohra doKnao sao caUk jaatI hUM.