Wednesday, August 26, 2009

Mahabharat आदिपर्व

पौराणिक कथाओं को पढ़कर यदि ऐसा लगे कि ये सब ऊल-जुलूल बातें हैं तो आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसा लगना स्वाभाविक है। पुराणों के सम्बंध कहा जाता है कि वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं (scince fictions) के जैसा ही समझा जा सकता है।


किन्तु देखा जाये तो पौराणिक कथाओं में कल्पना या यह कहें कि कपोल कल्पना आवश्यकता से अधिक है जो कि इन कथाओं को अतिरंजित बना देती हैं। कल्पना का आवश्यकता से अधिक होने का कारण शायद यह हो सकता है कि ये कथाएँ प्राचीन काल से चली आ रही हैं और समय समय पर अनेक लोगों ने इन कथाओं में अपने-अपने हिसाब से परिवर्तन कर दिया है। इन कथाओं की रचना के समय इनका उद्देश्य अवश्य ही कहानी के रूप में सत्य घटनाओं तथा ज्ञान की बातो को बताना रहा होगा किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में केवल मनोरंजन ही इन कथाओं का मुख्य उद्देश्य बन कर रह गया।
इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि इन कथाओं का विश्लेषण किया जाये तो कुछ न कुछ जानकारी अवश्य ही प्राप्त हो सकती है। इन कथाओं में अधिकतर बातें प्रतीक रूप में हैं जैसे कि श्रीमद्भागवत् पुराण की कथा में वर्णित हैः


"भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं।"
इतना सब कुछ होने के बाद भी यदि इन कथाओं का विश्लेषण किया जाये तो कुछ न कुछ जानकारी अवश्य ही प्राप्त हो सकती है। इन कथाओं में अधिकतर बातें प्रतीक रूप में हैं जैसे कि श्रीमद्भागवत् पुराण की कथा में वर्णित हैः


"भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं।"
आगे की कथा - महर्षि

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