एक बार जंगल में सफर करते हुए एक धनी सेठ को तीन चोरों ने पिटाई कर के लूट लिया।
पहला चोर बोला ''अरे भाई अब इस सेठ के पास बचा ही क्या है क्यों न इसे भी खतम कर दें ताकि यह पुलिस में खबर ना कर सके।'' बस ऐसा कहते ही उसने छुरा निकाला और सेठ को मारने ही वाला था कि दूसरा चोर बोला ''रूक, हमें अपना धन मिल गया है, अब इसे मारने से और क्या लाभ होगा? ने की बात है तो हम इसे रस्सी से अच्छी तरह बांध देते हैं ताकि यह पुलिस में खबर न कर सके और हम भाग सकें। यह कह कर दूसरे ने सेठ को एक वृक्ष के साथ बांध दिया और तीनो चोर वहां से चल दिये।
कुछ देर पश्चात तीसरे चोर का मन बेचैन हो उठा। वह सोचने लगा ''बेचारा सेठ कोई मदद ना मिली तो भूख-प्यास से मारा जायेगा या फिर हिंसक पशु उसे खा जायेगे। मुझे उसे छोड देना चाहिये।'' यह सोच कर तीसरा चोर वापस लौटा और उसने सेठ की रस्सी खोल दी। चोर सेठ के साथ महामार्ग तक गया और फिर सेठ को रास्ता दर्शाते कहने लगा ''ओ सेठ इस मार्ग से आप आगे प्रस्थान कीजिये। आपका गांव आ जाएगा।''
सेठ को इस व्यवहार से आश्चर्य तो हुआ फ़िरभी उसने इस चोर का धन्यवाद करते हुए उसे अपने घर चलने और खाने का निमंत्रण दिया। लेकिन तीसरे चोर ने प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए कहा ''नहीं, मैं वहां नहीं आ सकता। पुलिस मुझे पकड लेगी।मैने रास्ता बता दिया है अब आप खुद ही वहां पहुंच जाइये।'' ऐसा कहकर वह चोर अपने अन्य साथियों से मिलने वापस लौट पडा।
इस कथा का पहला चोर है तमोगुण जो सर्वनाश का कारण होता है। तमोगुण से आलस्य, प्रमाद और निस्तेजता आती है और बुध्दि भ्रष्ट हो जाती है। तमोगुणी मनुष्य का पतन निश्चित है।
दुसरा चोर है रजोगुण। यह बांधता है। कार्य करने की प्रवृत्ति तो यह कराता है लेकिन विवेक का इसमें अभाव होता है जिससे मनुष्य अच्छे और बुरे कार्य में फरक नहीं कर पाता और संसार से बंध जाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने रजोगुण के मोहमाया से बचने का उपाय सुझाया है।वे कहते हैं कि मनुष्य कार्य अवश्य करे लेकिन कर्मयोग के अनुसार निस्वार्थ भाव से पूजा समझ कर और फल की आशा न रखकर किया हुआ कार्य ही उत्तम कार्य है। ऐसा कर्म मनुष्य को संसार सागर में डुबोता नहीं बल्कि तारने में मदद करता है।
तीसरा चोर है सत्वगुण। यह तमोगुण और रजोगुण में फंसे मनुष्य को मुक्ति का रास्ता दिखाता है। लेकिन यह भी मनुष्य को गंतव्य तक ले जाने में असमर्थ है। केवल वही मनुष्य मुक्ति पाता है जो तीनो चोरों से अपने आप को छुडा कर खुद ही अपने गांव पहुंचने का प्रयास करता है। इस अवस्था को चतुर्थ या तुरीय अवस्था कहते है। त्रिगुणातीत।
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